अश्वमेध यज्ञ (Ashwamedh yagya) को विभिन्न कारणों से किया जाता है…. अश्वमेध यज्ञ का आयोजन सामाजिक कल्याण और विकास के लिए भी किया जाता है। यह यज्ञ समाज के लिए धन, संसाधन, और विकास के संकल्प को प्रदर्शित करता है।अश्वमेध यज्ञ में भगवान की पूजा और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का उद्देश्य भी होता है। यह यज्ञ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को प्रतिष्ठित करता है और समाज के धार्मिक नैतिकता की ओर प्रेरित करता है।अश्वमेध यज्ञ सामाजिक समर्थन के लिए भी किया जाता है। अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में समाज के विभिन्न वर्गों को समर्थन और अनुशासन का संदेश भी होता है। इसमें भगवान की पूजा के लिए समाज के विभिन्न लोगों की सहभागिता होती है। इन सभी कारणों के साथ, अश्वमेध यज्ञ भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परंपरा है जो राजनीतिक, धार्मिक, और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
“अश्व” (Ashwa), जिसका शाब्दिक अर्थ घोड़ा होता है, समाज में बड़े पैमाने पर बेलगाम बुराइयों का प्रतीक है जिसे हम प्रतिदिन देख रहे हैं ,अनुभव कर रहे हैं। “मेधा” (Medha) सभी बुराइयों और अपनी जड़ों से दोष के उन्मूलन का संकेत है। अश्वमेध यज्ञ का उद्देश्य जन-जन की भाव संवेदना, राष्ट्र की सामूहिक चेतना और निष्क्रिय प्रतिभा को जगाना होता है, एक नई शक्ति का संचार करना होता है जिससे आसुरी प्रवृत्तियों के निष्कासन एवं सत्प्रवृत्तियों को अपनाने का प्रेरणादायक प्रयास होता है।
विभिन्न ग्रंथों के अंतर्गत जिस तरह अश्वमेध यज्ञ की व्याख्या की गई है उसके अनुसार जब कोई राजा अपने साम्राज्य व आस-पास के अन्य राजा- महाराजाओं के युद्ध में परास्त कर उसे बंदी बना लेता था... या फिर युद्ध में अपने विरोधी राजा की हत्या कर....उसकी समस्त संपत्ति पर अपना अधिकार कर लेता था तब राजपुरोहित उसे अश्वमेध यज्ञ को संपन्न करने की सलाह देते थे ताकि उसे ‘दिग्विजयी राजा’ की उपाधि से अलंकृत किया जा सके।
अश्वमेध यज्ञ का प्रारम्भ ( Beginning of Ashwamedha yajna)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अश्वमेध यज्ञ (ashwamedha yagna) का प्रारम्भ बसंत अथवा ग्रीष्म ऋतु में होता था... इस यज्ञ से पूर्व किए जाने वाले अनुष्ठानों में एक वर्ष का समय लगता था... इस दौरान नगर में विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्सव हुआ करते थे।अश्वमेध यज्ञ का प्रारंभ एक प्राचीन रिवाज (ancient ritual) के रूप में भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इस यज्ञ का प्रारंभ एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है, जो राजा या राजा के प्रतिनिधि द्वारा होता है।यज्ञ करने वाला और उसके परिवार के साथ अनेक पुजापाठ, मंत्रों का पाठ, और पूजा के आयोजन किए जाते हैं।जैसे कि नाम से ही जाहिर है...अश्वमेध यज्ञ का संबंध अश्व यानि घोड़ों से है….. अश्वमेध यज्ञ के लिए एक विशिष्ट घोड़े का चयन किया जाता है…यह घोड़ा परंपरागत रूप से यज्ञ के लिए महत्वपूर्ण होता है और उसके चयन की प्रक्रिया महत्वपूर्ण रहती है। यज्ञ संपूर्ण होने के बाद राजा अपने अश्व को स्वतंत्र छोड़ देता था...उसके पीछे राजा की सेना जाती थी। जब यह घोड़ा अपनी विजय यात्रा पर जाता था तो स्थानीय लोग इसके आगमन की प्रतीक्षा में खड़े रहते थे।जो राजा इस अश्व को रोकता या इसे चुराता था तो उसे दिग्विजतयी राजा से युद्ध करना पड़ता था। अगर किसी कारणवश राजा का अश्व खो जाता था तो किसी दूसरे अश्व के साथ इस यज्ञ को पूरा किया जाता था. ऐसा माना जाता है कि जिन-जिन राज्यों में अश्वमेध यज्ञ का प्रदर्शन किया गया है, उन क्षेत्रों में अपराधों और आक्रामकता के स्तर में काफी कमी महसूस की गई है.